Program Brief
अम्बिकापुर-ः प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय एवं राजयोग एज्युकेशन एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन के ज्युरिस्ट विंग के तत्वाधान में यथार्थ न्याय में आध्यात्मिकता की भूमिका विषय पर न्यायविदों तथा विधि वेत्ताओं के लिये कार्यक्रम आयोजित किया गया। दिल्ली पाण्डव भवन से पधारी ज्युरिस्ट विंग की चेयरपर्सन आदरणीया पुष्पा दीदी जी की अध्यक्षता में,कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।<br/>कार्यक्रम में अध्यक्ष अधिवक्ता संध जिला न्यायालय अम्बिकापुर भ्राता हेमंत तिवारी जी, सचिव अधिवक्ता संघ जिला न्यायालय अम्बिकापुर भ्राता विजय तिवारी जी, वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार विश्वास जी, सरगुजा संभाग की संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी उपस्थित थे।<br/>कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों का सम्मान तिलक, बैज, गुलदत्ता देकर एवं द्वीप प्रज्जवलित कर किया गया।<br/>समाज का हर वर्ग न्याय से जुड़ा हुआ हैं, क्योंकि न्याय एक ऐसा वर्ग है, जो बुद्धि जीवि और जिम्मेवारों को प्राप्त होता है, क्योंकि न्याय का क्षेत्र सबसे श्रेष्ठ और ऊँचा माना जाता है, इसलिये न्याय करना प्रोफेशनल पेशा नहीं है, बल्कि अपने आप में ही एक बहुत बड़ा गुण हैं। इसलिये हर वर्ग के व्यक्ति के जीवन में जब भी कोई समस्या का हल नहीं मिलता है, तो वो न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है, और वो वकील या जज के पास एक आशा और विश्वास के साथ पहुँचता है, कि मेरे समस्या का समाधान होगा और सही न्याय मिलेगा इसलिये न्यायालय न्याय का मन्दिर कहलाता उक्त विचार दिल्ली पाण्डव भवन से पधारे ज्युरिस्ट विंग की चेयरपर्सन आदरणीया पुष्पा दीदी जी नव विश्व भवन चोपड़ापारा अम्बिकापुर के सभागार में न्यायविदों और विधि वेत्ताओं को सम्बोधित करते हुये कहा। और आगे उन्होंने अंग्रेजों के समय का उदाहरण देते हुये कहा कि पहले वकीलों का कोई फीस फिक्स नहीं था बल्कि जब जनता के समस्या का समाधान हो जाता था तो वो अपने भावना के एकॉर्डिंग धन दे देते थे। इससे स्पष्ट होता है कि पहले के लोग कितना सेवाभावना, समर्पणता और निष्ठा से कर्म करते थे, जिनका मूल उद्देश्य दुआ कमाना था धन कमाना नहीं। और आगे उन्होंने कानून में आध्यात्मिकता का महत्व समझाते हुये कहा कि यदि कानून में आध्यात्मिकता का समावेश हो जाये तो डगमगायी हुई कानून व्यवस्था को व्यवस्थित करना सरल हो जायेगा। चूँकि आध्यात्मिकता से अन्तर्मन की शक्तियाँ जागृत होती है, जिससे अपनी रीयल पहचान कर अपने बुद्धि को कुशाग्र बना सकते है और मनुष्य अपने जीवन में क्षमा, दया, सेवाभाव और कल्याण की भावना जैसे नैतिक गुणों को जीवन में अपना ले तो प्रत्येक व्यक्ति को सत्य और उचित न्याय दिला पाना सरल और सम्भव है।<br/><br/>मुख्य अतिथि भ्राता हेमंत तिवारी जी आदरणीय पुष्पा दीदी जी का सम्मान करते हुये कहा कि अध्यात्म के क्षेत्र में वर्षों से देश- विदेश में मानव कल्याण के लिये, किये जा रहें सेवाओं को शब्दों में बयाँ करना सम्भव नहीं है। आगे उन्होंने कहा कि मनुष्य बिना अध्यात्म और दर्शन के निरंकुश और अमर्यादित होता जा रहा है, जिसे हमारे व सरकारों के द्वारा बनाये गये कानून नियंत्रित नहीं कर सकती। वर्तमान समय छल, कपट, क्रोध और घृणा के वश हो भौतिक संसाधनों को प्राप्त करने में समाज कहीं न कहीं अनियंत्रित होता जा रहा है, जिसे नियंत्रित करने व सही न्याय दिलाने के लिय प्रमाणित चीजों का होना जरूरी है, जो अध्यात्म से ही हमें प्राप्त हो सकता है। यदि हमें अपने व्यक्तित्व को निखारना है, या समाज को सुधारना है, तो हमें अध्यात्म व दर्शन की ओर जाना पड़ेगा ।<br/>सरगुजा संभाग की सेवाकेन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी अतिथियों का स्वागत व सम्मान करते हुये कि न्याय के लिये आध्यात्मिकतस होना जरूरी है, जीवन में सही निर्णय लेने के लिये एकाग्र व स्वच्छ मन एवं समान भावना जैसे गुणों की आवश्यकता होती, जो आध्यात्मिकता से ही प्राप्त होती है और आध्यात्मिकता के द्वारा ही हमें कर्मों की गुह्नता का ज्ञान प्राप्त होता है, जिससे हम यथार्थ निर्णय लेने में सक्षम होते है।<br/>विशिष्ट अतिथि विजय तिवारी जी ने कहा कि यथार्थ न्याय की कल्पना मानव जाति को अध्यात्म के शरण में जाये बिना नहीं मिल सकता हैं। वास्तव में कानून वो मकड़ी का जाल है, जिसमें गरीब फँस जाते है और अमीर निकल जाते है, लेकिन समाज में यथार्थ न्याय तभी हो सकता है, जब हमारी सोच ऊँची, सकारात्मक और मानव कल्याण अर्थ होगी। और आगे उन्होंने कहा कि हमारे विधि में न्याय के लिये न्यायाधीष बनाया गया है, लेकिन परम न्यायाधीश तो परमात्मा ही है, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हर बात में यथार्थ न्याय प्राकृतिक रूप से करते हैं।<br/>भ्राता दिलीप कुमार विश्वास जी ने कहा कि यथार्थ निर्णय में आध्यात्मिकता की भूमिका विषय, बहुत असीमित विषय है। आध्यात्मिकता आत्मअनुभूति व ईश्वरीय शक्ति है। ईश्वर नायक है, और उसका प्रतिनिध धरती पर वकील के रूप में है, यदि किसी का कुछ गलत हो जाता है, तो उसे वकील ही बना सकता है। उन्होंने आगे कहा कि कोई भी न्याय तीन पक्ष के बिना नहीं हो सकता है, एक द्वन्द्वी, दूसरा प्रतिद्वन्द्वी और तीसरा जज। तीनों न्यायविद् होते है, जब तीनों मौजूद होते है, तो कोट पूरा होता है।<br/>कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत गौरी व परी के द्वारा स्वागत नृत्य प्रस्तृत कर किया गया।<br/>कार्यक्रम के पश्चात् सभी ने ब्रह्माभोजन स्वीकार किया।<br/>कार्यक्रम का सफल संचालन बी. के. प्रतिमा बहन ने किया।